शिक्षा मात्र पठन-पाठन की क्रिया नहीं है। यह हमारे जीवन के लिए ऐसी अनिवार्यता है जो हमें समाज की प्रगति में कुछ योगदान करने के लायक बनाती है। लेकिन जब हम आस-पास के परिदृश्य पर दृष्टि डालते हैं तो लगता है कि हम अपने आपको शिक्षित करने में विफल रहे हैं। गाँवों के गरीब बच्चों को शिक्षित करने की बात बहुत दूर है। इस समस्या पर विचार करने में अभी हमें बहुत समय लगेगा। अपने शहरों और कस्बों के विश्वविद्यालयों में हम जो शिक्षा दे रहें हैं उसकी गुणवत्ता क्या है? यह गुणवत्ता हमारे राष्ट्रीय जीवन की गुणवत्ता में प्रतिबंधित होती है। यहां भी जनसंख्या एक समस्या है। हम हर क्षण बढ़ रही किसी बेकाबू भीड़ के सभ्य नहीं बना सकते क्योंकि हमारी जनसंख्या बहुत अधिक है।